बायोपिक्स बनाने के इस नए ट्रेंड में, क्या हसीना पारकर पर फिल्म बनाना सही है?

Do we need a biopic on Haseena Parkar?

बॉलीवुड में पिछले कुछ वर्षो में बायोपिक्स का चलन तेजी से बढ़ रहा है। ऐसा इसलिए भी है क्यूंकि बायोपिक्स को लेकर दर्शकों में एक अलग तरह का उत्साह होता है। ऐसी फिल्मों के माध्यम से दर्शकों को अपने आदर्श व्यक्तियों को और करीब से जानने का मौका मिलता है। पिछले कुछ वर्षों में स्पॉट्स बायोपिक्स की धूम रही है। दंगल, एम. एस. धोनी – द अनटोल्ड स्टोरी, सचिन, मैरी कोम, भाग मिल्खा भाग जैसी फिल्मों को दर्शकों का खूब प्यार मिला है। स्पोर्ट्स के अलावा मशहूर अपराधियों और गैंगस्टर्स पर बनी बायोपिक्स भी बॉलीवुड निर्माताओं के लिये सफलता का फार्मूला रहीं हैं। रईस, कंपनी, शूटआउट एट लोखंडवाला, शूटआउट एट वडाला, वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई जैसी फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिज़नेस किया है। अब इस लिस्ट में एक और फिल्म का नाम जुड़ने जा रहा है। हम बात कर रहें हैं श्रद्धा कपूर की आने वाली फिल्म ‘हसीना पारकर’ की। अगर आपको हसीना पारकर के बारे में नहीं पता तो बताते चलें:

अपूर्व लाखिया द्वारा निर्देशित, ‘हसीना परकार’ भारत के मोस्ट वांटेड आतंकवादी दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर के जीवन पर आधारित है,  जो कथित रूप से खुद एक अपराधी थी और अपने भाई की आड़ में अपराधों को अंजाम देती थी।

Shraddha Kapoor as Haseena Parkarअब सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या ऐसे अपराधी पर फिल्म बनाना सही है? जहाँ एक ओर सचीन और मिल्खा सिंह की बायोपिक्स लोगों को प्रेरणा देती है, वहीँ दूसरी ओर इस तरह की बायोपिक बनाने के पीछे आखिर मकसद क्या है। सबसे बड़ी बात हसीना पारकर कोई बहुत बड़ी शख्सियत नहीं रही हैं और लोगों को दुनिया के सबसे बड़े अपराधी की बहन के बारे में जानने की कोई खास उत्सुकता नही है।

श्रद्धा कपूर ने फिल्म के लिए काफी मेहनत की है और ये फिल्म उनके करियर की सबसे मुश्किल फिल्म है। ऐसी उम्मीद है कि हसीना पारकर के किरदार को वो पर्दे पर बखूबी निभाएंगी। एक बात तो बताना ही भूल गए। फिल्म में दाऊद इब्राहीम का किरदार श्रद्धा के भाई सिद्धान्त कपूर निभा रहे है।

Shraddha and Siddhanth as Haseena Parkar and Dawood Ibrahim
Shraddha and Siddhanth as Haseena Parkar and Dawood Ibrahim

अगर बायोपिक बनानी ही है तो ऐसे लोगों पर बनाए जिनकी कहानियां दुनिया तक पहुँचाना जरूरी है। ऐसी शख्सियतों पर बनाए जिनका जीवन लोगों के लिए प्रेरणा का श्रोत रहा है। ऐसी कहानियां लेकर आए, जिसे देखकर लोगों को जीवन में आगे बढ़ने और कुछ करने की चाह महसूस हो। बॉलीवुड को जरूरत है कि बायोपिक्स बनाते वक़्त दर्शकों की सोच का ध्यान रखें।

ऐसी फिल्में लोगों के दिमाग पर असर करती है और ऐसा देखा गया है कि ज्यादातर बायोपिक्स में गैंगस्टर्स को गौरवान्गित किया जाता है। अब गैंगस्टर्स पर फिल्में बनाना और उनमें उनको अच्छा इंसान बताना तो हमारी समझ से परे है।

खैर, ये तो रही हमारी राय। आप लोग इस मुद्दे पर अपनी राय कमेंट में शेयर कर सकते है।

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